मेरे दोस्त मुझे नहीं चाहिए गाँव
नहीं चाहिए इन गाँवों की तारीफ
यहाँ काँटे कीचड़ पत्थर हैं
मेरे गाँव को शहर बना दो
मैं बदल रहा हूँ अपना गीत
जब तुम आते हो अपने गाँव
दो दिन में ही लौट पड़े हो
क्यों न रहे तुम अपने गाँव?
खेत नहीं खलिहान नहीं फिर कैसा ये गाँव बचा
बैल नहीं, तालाब नहीं फिर ये कैसा ये गाँव रहा
कोई नहीं लौटता गाँवों में रहने
शहरों का अपराध लिए तुम भी
धीरे धीरे बच कर यादों की नाव चलाते
ओ कवि तुम हमको भी शहर बुला